प्रकृति की अनमोल धरोहर ठेमा नदी के अस्तित्व को बचाने की मुहिम
अवैध खनन,अतिक्रमण व जलस्रोतों के क्षति
से कराहती सदानीरा ठेमा नदी- आलोक अग्रहरि
दुद्धी/उपेंद्र तिवारी/ हर्रा,बहेड़ा,पियार, आंवला, साखू, महुआ, सीसम, सिद्धा, खैर, तेंदू, हल्दू सहित अनन्य बेश कीमती पेड़ो से आच्छादित औषधीय गुणों से परिपूर्ण जड़ी बूटी वाले जंगलों से होकर बहने वाली ठेमा नदी के सामने आज अपने प्रवाह की अविरलता के लिए संघर्षरत होना किसी चुनौती से कम नही। कभी तेज और निर्मल धारा से बहने वाली यह नदी जो दुद्धी सहित कई गांवों की लाइफ लाइन के साथ जिले के भूगोल का खास हिस्सा थी, पर आज आलम यह है कि यह नदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। कई स्थानों पर नदी की जलधारा स्थिर हो चुकी है। जिससे जंगल में रहने वाले पशु पक्षियों के सामने भी पानी पीने का संकट है। वहीं इलाके में सिंचाई की समस्या भी बढ़ रही है। अवैध खनन व अतिक्रमण से नदी की परिसीमा का अस्तित्व भी खतरे में है। ठेमा नदी का उदगम बभनी ब्लाक के सहगोडा गाँव के एक पहाड़ी से हुआ है। ठेमा नदी अपने उदगम से कनहर नदी में संगम होने तक लगभग 80-90 किलोमीटर का सफर तय करती है। नदी के किनारे बसे गांव के निवासी कहते हैं कि ठेमा नदी की जलधारा कभी सूखती नहीं है। लेकिन वर्षा ऋतु को छोड़कर पहले जैसा जल प्रवाह अब देखने को नही मिलता। इसका प्रवाह उन दुर्लभ,औषधीय व जीवनपरक गुणों से ओतप्रोत पेड़ पौधों व जड़ी बूटियों के जंगलों से है,जहां से होकर यह नदी प्रवाहित हो रही है।इस वजह से औषधीय गुणों वाला यह पानी लोगों को सदैव निरोग रखने वाला माना जाता रहा है। प्रारब्ध से यह नदी बारहों मास बहती है इसलिए इसे सदानीरा भी कहा जाता है।किंतु अब कई स्थानों पर नदी के प्रवाह में वह अठखेलियाँ व गति देखने को नही मिलती, जो पूर्व में हुआ करती थीं। जनश्रुति के अनुसार पूर्व समय में यह पूरा क्षेत्र घनघोर जंगल था,जिसमें आदिवासियों का पूरा बसेरा हुआ करता था। चैरी,नेमना,सहगोड़ा,नधिरा,जरहा के भीषण जंगल में रह रहे आदिवासियों के जीवनयापन में सब कुछ था। लेकिन जल की समस्या ही मुख्य बाधा रही,दूर दूर तक कोई भी जलसंसाधन नही था, लोग वर्षा के जल व नालों के चुआड़ से पानी से अपनी प्यास बुझाने को विवश थे। आदिवासी संस्कृति में प्रारंभ से ही प्रकृति को ही देव मान कर उसकी पूजा आराधना की जाती रही है। कहते हैं कि जल की समस्या से व्याकुल आदिवासियों ने एक विशेष मुहूर्त पर प्रकृति की आराधना व पूजा "हे माँ,हे माँ " कह कर की। आदिवासियों ने मिलकर जिस स्थान पर यह पूजा किया वह स्थान सहगोड़ा कहलाया। प्रकृति ने अपने बच्चों की पुकार सुनी और आराधित स्थल से थोड़ी दूर एक छोटी सी पहाड़ी से जल की धारा फूट पड़ी। सभी लोग प्रसन्न हो गए। जल की धारा निकलने से प्रसन्न आदिवासियों ने उस जलधारा को हे माँ नदी की संज्ञा दी,जो कालांतर में शाब्दिक अपभ्रंश के कारण हेमां नदी ही ठेमा नदी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी रही ठेमा नदी में अवैध खनन,अतिक्रमण व पेड़ पौधों के संरक्षण के साथ इस जीवनदायिनी नदी का अस्तित्व आमजन के कंधों पर आन पड़ी है।वरना ठेमा नदी भी इतिहास के पन्नों में सिमट कर जायेगा। वर्तमान समय में दुद्धी नगर पंचायत के लिए यह नदी जलापूर्ति का एक मात्र संसाधन है जो पूरे नगर पंचायत की प्यास बुझा रहा है। इसके साथ ही नदी किनारे बसे गांवों की प्यास बुझाने व सिचाईं के साधन के लिए यह किसी वरदान से कम नही है। सामाजिक कार्यकर्ता व श्रीरामलीला कमेटी के महामंत्री आलोक अग्रहरि ने ठेमा नदी के विषय मे बताते हुए कहा कि उद्गम से संगम के बीच इस नदी को इतनी पीड़ा पहुँचायी गई है कि उसका बयां करना कठिन है। बालू-रेत का अवैध खनन,नदी की परिसीमा का अतिक्रमण, जलस्रोत को पहुँचायी जा रही क्षति के साथ साथ जिम्मेदार तंत्र का दोषपूर्ण रवैया भी एक है। उन्होंने कहा कि इस नदी में कई ऐसे जल स्रोत है जो अखण्ड भीषण गर्मी में भी अपने जलस्रोत बन्द नही करते। लेकिन बदलते परिवेश में इन सदानीरा जलस्रोत को अवैध खनन से बहुत नुकसान हुआ है।समय रहते यदि इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो इस नदी को सदानीरा का मिला अलंकार इससे छीन जायेगा और रह जायेगा केवल काकड़ पत्थर, रेत व मिट्टी। पर्यावरण व जल संरक्षण कार्यकर्ता डॉ लवकुश प्रजापति, कमलेश मोहन,दुद्धी चेयरमैन राजकुमार अग्रहरि,रविन्द्र जायसवाल,कन्हैया लाल अग्रहरि, सुरेन्द्र अग्रहरि,डॉ अरुण कुमार विश्वास ने ठेमा नदी के वजूद की रक्षा के लिए शासन प्रशासन समेत आम जनमानस का ध्यानाकर्षण कराया है।